सेहतनामा- तेजी से बढ़ रही सी-सेक्शन डिलीवरी:डॉक्टर से जानें, नॉर्मल डिलीवरी कैसे होगी, प्रेग्नेंसी के समय बरतें 12 सावधानियां

भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, देश में साल 2016 से 2021 के बीच सी-सेक्शन डिलीवरी के केस 17.2% से बढ़कर 21.5% हो गए। निजी अस्पतालों में ये मामले दोगुने से भी ज्यादा हैं। साल 2016 में डिलीवरी के 43.1% केस में सी-सेक्शन की जरूरत पड़ी, जबकि 2021 में ये आंकड़ा बढ़कर 49.7% हो गया। इसका मतलब है कि भारत में निजी अस्पतालों में हर दो में से एक डिलीवरी सी-सेक्शन के जरिए हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, पूरी दुनिया में साल 2000 में डिलीवरी के 12.1% केस में सी-सेक्शन की जरूरत पड़ी। वहीं साल 2021 तक ये मामले बढ़कर 21.1% हो गए। इसका मतलब है कि बीते दो दशकों में सी-सेक्शन के मामले लगभग 80% बढ़ गए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, सिर्फ 10%-25% डिलीवरी के मामलों में ही सी-सेक्शन की जरूरत पड़ती है। जरूरत के बिना डिलीवरी के लिए सी-सेक्शन का विकल्प नहीं चुनना चाहिए। इसके बावजूद निजी अस्पतालों में पैसे बनाने के चक्कर में सी-सेक्शन केस तेजी से बढ़ रहे हैं। इसलिए ‘सेहतनामा’ में आज जानेंगे कि सी-सेक्शन की जरूरत कब पड़ती है। साथ ही जानेंगे कि- भारत में सी-सेक्शन डिलीवरी के आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, भारत में हर साल लगभग 30% से ज्यादा डिलीवरी सिजेरियन प्रक्रिया से होती हैं। शहरी क्षेत्रों में इसका प्रतिशत ज्यादा है। कॉम्प्लिकेशन होने पर सी-सेक्शन से कई महिलाओं और बच्चों की जान बच सकती है। हालांकि, जरूरत के बिना सी-सेक्शन किया जाना चिंता का विषय बन रहा है। सी-सेक्शन डिलीवरी क्या है? सी-सेक्शन डिलीवरी एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें पेट और गर्भाशय पर कट लगाकर बच्चे को बाहर निकाला जाता है। आमतौर पर इस प्रक्रिया की जरूरत तब पड़ती है, जब नॉर्मल डिलीवरी सुरक्षित नहीं होती है या फिर कुछ कॉम्प्लिकेशन का जोखिम होता है। कब जरूरी होता है सी-सेक्शन? डॉ. प्रिया गुप्ता कहती हैं कि सी-सेक्शन डिलीवरी की जरूरत तब पड़ती है, जब नॉर्मल डिलीवरी में मां या बच्चे की जान को जोखिम हो सकता है। यह समस्या तब होती है, जब गर्भ में बच्चे की पोजीशन ठीक नहीं होती है। अगर गर्भ में बच्चा उल्टा है या आड़ा-तिरछा है तो सी-सेक्शन की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा और क्या कारण हो सकते हैं, ग्राफिक में देखिए: सी-सेक्शन डिलीवरी कैसे की जाती है? यह एक सर्जिकल प्रक्रिया होती है, जिसमें ये स्टेप्स होते हैं- एनेस्थीसिया: मरीज को लोकल (स्पाइनल) या जनरल एनेस्थीसिया दिया जाता है। कट: डॉक्टर पेट के निचले हिस्से पर कट लगाकर गर्भाशय तक पहुंचते हैं, फिर गर्भाशय में चीरा लगाकर बच्चे को बाहर निकालते हैं। नाल हटाना: बच्चे के जन्म के बाद गर्भनाल काटकर मां और बच्चे को अलग किया जाता है। टांके यानी स्टिचेज: इसके बाद गर्भाशय और पेट के कटे हुए हिस्से को टांके लगाकर बंद किया जाता है। रिकवरी: मां और बच्चे को कुछ घंटों तक मॉनिटर किया जाता है। एनेस्थीसिया का असर खत्म होने के कुछ घंटे बाद हल्की डाइट शुरू कर दी जाती है। क्या लाइफस्टाइल बदलकर सी-सेक्शन से बच सकते हैं? हां, लाइफस्टाइल में सुधार कर सी-सेक्शन के चांस कम किए जा सकते हैं। हालांकि, कॉम्प्लिकेशन ज्यादा होने पर डॉक्टर सी-सेक्शन की सलाह देते हैं। इसके बावजूद कुछ हेल्दी लाइफस्टाइल च्वॉइस अपनाने से नॉर्मल डिलीवरी के चांस बढ़ सकते हैं। सी-सेक्शन डिलीवरी से जुड़े कुछ कॉमन सवाल और जवाब सवाल: सी-सेक्शन के फायदे और नुकसान क्या हैं? जवाब: फायदे: नुकसान: सवाल: सी-सेक्शन के बाद दोबारा प्रेग्नेंसी के लिए कितना इंतजार करना चाहिए? जवाब: आमतौर पर कम-से-कम 18 से 24 महीने का अंतर रखने की सलाह दी जाती है। अगली प्रेग्नेंसी से पहले शरीर का पूरी तरह रिकवर होना जरूरी है, ताकि अगला बच्चा स्वस्थ हो सके। लेकिन बेस्ट प्रैक्टिस यही है कि दो बच्चों के बीच कम से कम 3 से 5 साल का अंतराल हो। सवाल: क्या सी-सेक्शन से मां या बच्चे को कोई खतरा हो सकता है? जवाब: आमतौर पर सी-सेक्शन सुरक्षित प्रक्रिया है। हालांकि, कुछ मामलों में इसमें भी जोखिम हो सकते हैं, जैसे- सवाल: क्या सी-सेक्शन के बाद नॉर्मल डिलीवरी हो सकती है? जवाब: हां, अगर मां और बच्चे की स्थिति सामान्य है तो अगली डिलीवरी नॉर्मल हो सकती है। इसे VBAC यानी वेजाइनल बर्थ आफ्टर सिजेरियन कहा जाता है। हालांकि, सिजेरियन के बाद अगली डिलीवरी में डॉक्टर की सलाह जरूर लें। सवाल: सी-सेक्शन डिलीवरी में सर्जरी कितनी देर चलती है? जवाब: सी-सेक्शन में आमतौर पर 30 से 60 मिनट का समय लगता है। अगर इस दौरान कोई कॉम्प्लिकेशन होता है तो सामान्य से ज्यादा समय लग सकता है। हालांकि, इसकी रिकवरी में नॉर्मल डिलीवरी की तुलना में अधिक समय लग सकता है। सवाल: सी-सेक्शन के बाद रिकवरी में कितना समय लगता है? जवाब: सर्जरी के बाद मां और बच्चे को मॉनिटर करने के लिए 3 से 4 दिन अस्पताल में रहना होता है। इसकी रिकवरी में लगभग 4 से 6 हफ्ते का समय लग सकता है। इस दौरान टांकों की देखभाल और हल्की-फुल्की एक्सरसाइज करना जरूरी है। सवाल: सी-सेक्शन से पैदा हुए बच्चे और नॉर्मल डिलीवरी से पैदा हुए बच्चे में किसकी इम्यूनिटी ज्यादा मजबूत होती है? जवाब: नेचर मेडिसिन में पब्लिश साल 2019 की एक स्टडी के मुताबिक, नॉर्मल डिलीवरी से जन्मे बच्चों की इम्यूनिटी सी-सेक्शन से जन्मे बच्चों की तुलना में ज्यादा मजबूत होती है। अगर बच्चा नॉर्मल डिलीवरी से जन्म लेता है, तो उसे मां की बर्थ कैनाल यानी जन्म नली से गुजरना होता है। इस दौरान वह कई अच्छे-बुरे बैक्टीरिया के संपर्क में आता है। ये गुड बैक्टीरिया बच्चे की इम्यूनिटी को मजबूत बनाने में मदद करते हैं। ……………………. सेहत की ये खबर भी पढ़िए सेहतनामा- मीनोपॉज क्या है:क्या पीरियड्स बंद होने पर बढ़ता बीमारियों का जोखिम, डॉक्टर से जानें हर सवाल का जवाब मीनोपॉज से पहले, इसके दौरान और इसके कई साल बाद तक रात में अचानक पसीना, बेचैनी और सिर दर्द जैसे लक्षण दिख सकते हैं। यह सब होना सामान्य है, लेकिन मीनोपॉज के कारण पैदा ह

फ़रवरी 26, 2025 - 22:20
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सेहतनामा- तेजी से बढ़ रही सी-सेक्शन डिलीवरी:डॉक्टर से जानें, नॉर्मल डिलीवरी कैसे होगी, प्रेग्नेंसी के समय बरतें 12 सावधानियां
भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, देश में साल 2016 से 2021 के बीच सी-सेक्शन डिलीवरी के केस 17.2% से बढ़कर 21.5% हो गए। निजी अस्पतालों में ये मामले दोगुने से भी ज्यादा हैं। साल 2016 में डिलीवरी के 43.1% केस में सी-सेक्शन की जरूरत पड़ी, जबकि 2021 में ये आंकड़ा बढ़कर 49.7% हो गया। इसका मतलब है कि भारत में निजी अस्पतालों में हर दो में से एक डिलीवरी सी-सेक्शन के जरिए हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, पूरी दुनिया में साल 2000 में डिलीवरी के 12.1% केस में सी-सेक्शन की जरूरत पड़ी। वहीं साल 2021 तक ये मामले बढ़कर 21.1% हो गए। इसका मतलब है कि बीते दो दशकों में सी-सेक्शन के मामले लगभग 80% बढ़ गए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, सिर्फ 10%-25% डिलीवरी के मामलों में ही सी-सेक्शन की जरूरत पड़ती है। जरूरत के बिना डिलीवरी के लिए सी-सेक्शन का विकल्प नहीं चुनना चाहिए। इसके बावजूद निजी अस्पतालों में पैसे बनाने के चक्कर में सी-सेक्शन केस तेजी से बढ़ रहे हैं। इसलिए ‘सेहतनामा’ में आज जानेंगे कि सी-सेक्शन की जरूरत कब पड़ती है। साथ ही जानेंगे कि- भारत में सी-सेक्शन डिलीवरी के आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, भारत में हर साल लगभग 30% से ज्यादा डिलीवरी सिजेरियन प्रक्रिया से होती हैं। शहरी क्षेत्रों में इसका प्रतिशत ज्यादा है। कॉम्प्लिकेशन होने पर सी-सेक्शन से कई महिलाओं और बच्चों की जान बच सकती है। हालांकि, जरूरत के बिना सी-सेक्शन किया जाना चिंता का विषय बन रहा है। सी-सेक्शन डिलीवरी क्या है? सी-सेक्शन डिलीवरी एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें पेट और गर्भाशय पर कट लगाकर बच्चे को बाहर निकाला जाता है। आमतौर पर इस प्रक्रिया की जरूरत तब पड़ती है, जब नॉर्मल डिलीवरी सुरक्षित नहीं होती है या फिर कुछ कॉम्प्लिकेशन का जोखिम होता है। कब जरूरी होता है सी-सेक्शन? डॉ. प्रिया गुप्ता कहती हैं कि सी-सेक्शन डिलीवरी की जरूरत तब पड़ती है, जब नॉर्मल डिलीवरी में मां या बच्चे की जान को जोखिम हो सकता है। यह समस्या तब होती है, जब गर्भ में बच्चे की पोजीशन ठीक नहीं होती है। अगर गर्भ में बच्चा उल्टा है या आड़ा-तिरछा है तो सी-सेक्शन की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा और क्या कारण हो सकते हैं, ग्राफिक में देखिए: सी-सेक्शन डिलीवरी कैसे की जाती है? यह एक सर्जिकल प्रक्रिया होती है, जिसमें ये स्टेप्स होते हैं- एनेस्थीसिया: मरीज को लोकल (स्पाइनल) या जनरल एनेस्थीसिया दिया जाता है। कट: डॉक्टर पेट के निचले हिस्से पर कट लगाकर गर्भाशय तक पहुंचते हैं, फिर गर्भाशय में चीरा लगाकर बच्चे को बाहर निकालते हैं। नाल हटाना: बच्चे के जन्म के बाद गर्भनाल काटकर मां और बच्चे को अलग किया जाता है। टांके यानी स्टिचेज: इसके बाद गर्भाशय और पेट के कटे हुए हिस्से को टांके लगाकर बंद किया जाता है। रिकवरी: मां और बच्चे को कुछ घंटों तक मॉनिटर किया जाता है। एनेस्थीसिया का असर खत्म होने के कुछ घंटे बाद हल्की डाइट शुरू कर दी जाती है। क्या लाइफस्टाइल बदलकर सी-सेक्शन से बच सकते हैं? हां, लाइफस्टाइल में सुधार कर सी-सेक्शन के चांस कम किए जा सकते हैं। हालांकि, कॉम्प्लिकेशन ज्यादा होने पर डॉक्टर सी-सेक्शन की सलाह देते हैं। इसके बावजूद कुछ हेल्दी लाइफस्टाइल च्वॉइस अपनाने से नॉर्मल डिलीवरी के चांस बढ़ सकते हैं। सी-सेक्शन डिलीवरी से जुड़े कुछ कॉमन सवाल और जवाब सवाल: सी-सेक्शन के फायदे और नुकसान क्या हैं? जवाब: फायदे: नुकसान: सवाल: सी-सेक्शन के बाद दोबारा प्रेग्नेंसी के लिए कितना इंतजार करना चाहिए? जवाब: आमतौर पर कम-से-कम 18 से 24 महीने का अंतर रखने की सलाह दी जाती है। अगली प्रेग्नेंसी से पहले शरीर का पूरी तरह रिकवर होना जरूरी है, ताकि अगला बच्चा स्वस्थ हो सके। लेकिन बेस्ट प्रैक्टिस यही है कि दो बच्चों के बीच कम से कम 3 से 5 साल का अंतराल हो। सवाल: क्या सी-सेक्शन से मां या बच्चे को कोई खतरा हो सकता है? जवाब: आमतौर पर सी-सेक्शन सुरक्षित प्रक्रिया है। हालांकि, कुछ मामलों में इसमें भी जोखिम हो सकते हैं, जैसे- सवाल: क्या सी-सेक्शन के बाद नॉर्मल डिलीवरी हो सकती है? जवाब: हां, अगर मां और बच्चे की स्थिति सामान्य है तो अगली डिलीवरी नॉर्मल हो सकती है। इसे VBAC यानी वेजाइनल बर्थ आफ्टर सिजेरियन कहा जाता है। हालांकि, सिजेरियन के बाद अगली डिलीवरी में डॉक्टर की सलाह जरूर लें। सवाल: सी-सेक्शन डिलीवरी में सर्जरी कितनी देर चलती है? जवाब: सी-सेक्शन में आमतौर पर 30 से 60 मिनट का समय लगता है। अगर इस दौरान कोई कॉम्प्लिकेशन होता है तो सामान्य से ज्यादा समय लग सकता है। हालांकि, इसकी रिकवरी में नॉर्मल डिलीवरी की तुलना में अधिक समय लग सकता है। सवाल: सी-सेक्शन के बाद रिकवरी में कितना समय लगता है? जवाब: सर्जरी के बाद मां और बच्चे को मॉनिटर करने के लिए 3 से 4 दिन अस्पताल में रहना होता है। इसकी रिकवरी में लगभग 4 से 6 हफ्ते का समय लग सकता है। इस दौरान टांकों की देखभाल और हल्की-फुल्की एक्सरसाइज करना जरूरी है। सवाल: सी-सेक्शन से पैदा हुए बच्चे और नॉर्मल डिलीवरी से पैदा हुए बच्चे में किसकी इम्यूनिटी ज्यादा मजबूत होती है? जवाब: नेचर मेडिसिन में पब्लिश साल 2019 की एक स्टडी के मुताबिक, नॉर्मल डिलीवरी से जन्मे बच्चों की इम्यूनिटी सी-सेक्शन से जन्मे बच्चों की तुलना में ज्यादा मजबूत होती है। अगर बच्चा नॉर्मल डिलीवरी से जन्म लेता है, तो उसे मां की बर्थ कैनाल यानी जन्म नली से गुजरना होता है। इस दौरान वह कई अच्छे-बुरे बैक्टीरिया के संपर्क में आता है। ये गुड बैक्टीरिया बच्चे की इम्यूनिटी को मजबूत बनाने में मदद करते हैं। ……………………. सेहत की ये खबर भी पढ़िए सेहतनामा- मीनोपॉज क्या है:क्या पीरियड्स बंद होने पर बढ़ता बीमारियों का जोखिम, डॉक्टर से जानें हर सवाल का जवाब मीनोपॉज से पहले, इसके दौरान और इसके कई साल बाद तक रात में अचानक पसीना, बेचैनी और सिर दर्द जैसे लक्षण दिख सकते हैं। यह सब होना सामान्य है, लेकिन मीनोपॉज के कारण पैदा हुए हॉर्मोनल असंतुलन से हार्ट डिजीज, ऑस्टियोपोरोसिस और यूटीआई प्रॉब्लम्स का जोखिम बढ़ जाता है। पूरी खबर पढ़िए...
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