महाकुंभ 2025: क्या आप 10-12 घंटे खड़े रह सकते हैं? मिलिए इन बाबा से जो छह साल से खड़े हैं!

अदालतों में किसी छोटी-मोटी गलती पर कोर्ट के उठने तक खड़े रहने की सजा दी जाती है. इसी तरह स्कूलों में टीचर उद्दंड छात्रों को पूरे पीरियड में खड़े रहने की सजा दे देते हैं. यह सजा पाने वाले एक से तीन-चार घंटे तक खड़े रहने के बाद पस्त हो जाते हैं और अपने कान पकड़ते हैं. यदि आपको 24 घंटे तक खड़ा रखा जाए तो क्या होगा? लेकिन महाकुंभ के तप और आस्था के रंग अपने प्रण पर अटल एक ऐसे महाराज आए हैं जो पिछले छह साल से लगातार खड़े हैं.

जनवरी 12, 2025 - 21:37
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महाकुंभ 2025: क्या आप 10-12 घंटे खड़े रह सकते हैं? मिलिए इन बाबा से जो छह साल से खड़े हैं!

अदालतों में किसी छोटी-मोटी गलती पर कोर्ट के उठने तक खड़े रहने की सजा दी जाती है. इसी तरह स्कूलों में टीचर उद्दंड छात्रों को पूरे पीरियड में खड़े रहने की सजा दे देते हैं. यह सजा पाने वाले एक से तीन-चार घंटे तक खड़े रहने के बाद पस्त हो जाते हैं और अपने कान पकड़ते हैं. यदि आपको 24 घंटे तक खड़ा रखा जाए तो क्या होगा? लेकिन महाकुंभ के तप और आस्था के रंग अपने प्रण पर अटल एक ऐसे महाराज आए हैं जो पिछले छह साल से लगातार खड़े हैं.

प्रयागराज में महाकुंभ मेले में तरह-तरह के साधु-संत, नागा साधु, तपस्वी, अघोरी साधु और हठयोगी आए हैं. ऐसे ही एक हठयोगी से NDTV ने मुलाकात की. यह ऐसे तपस्वी संत हैं जो पिछले छह साल से दिन-रात खड़े हैं. इस हठयोग के पीछे उनका जन कल्याण का संकल्प है. 

यह हठयोगी बाबा एक झूले को पकड़े रहते हैं और खड़े रहते हैं. महाराज पिछले छह साल से लगातार खड़े हैं, यानी कि वे चौबीसों घंटे खड़े रहते हैं. उन्होंने बताया कि यह जनकल्याण के लिए हठयोग है. उनसे जब रात में सोने के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वे रात में ऐसे ही आराम कर लेते हैं. झूले में आराम नहीं होता तो टेबिल पकड़कर खड़े-खड़े आराम करते हैं. 

उन्होंने बताया कि वे पहले भी आठ साल तक यही हठयोग कर चुके हैं. उन्होंने कहा कि जनकल्याण, जनहित मांगा है, उसी के लिए खड़े हैं. धर्म की जय हो, विश्व का कल्याण हो.

पर्यावरण बिगड़ने से वे चिंतित हैं. उन्होंने कहा कि, धुएं से मेरी हालत खराब हो गई है, आंखों में दर्द होता है. प्रकृति में धुआं बहुत हो गया है.

हठयोग वह साधना पद्धति है जिसमें योगी प्रकृति को उसके शाश्वत स्वरूप में स्वीकार करते हुए आचरण अपनाता है. वह प्रकृति के साथ चलता है और अपने शरीर को उसी के अनुरूप ढाल लेता है. अक्सर ऐसे हठयोगी देखने को मिलते हैं जो तेज सर्दियों में घड़े को ठंडे पानी से स्नान करते हैं. वे तेज गर्मी के दिनों में जब धूप सबसे तेज होती है, तब पत्थर पर बैठकर अपने चारों ओर अलाव जलाते हैं. इस साधना से वे खुद को बिना किसी सहारे के प्रकृति के अनुरूप बना लेते हैं. लगातार खड़े रहना, एक पैर पर खड़े रहना आदि भी हठयोग है. 

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