ड्राई आई सिंड्रोम से पीड़ित मरीजों की 15 मिनट में वापस आएगी आंखों की रोशनी, AIIMS में हुआ सफल ट्रायल
ड्राई आई सिंड्रोम किसी को भी प्रभावित कर सकता है, लेकिन बढ़ती उम्र के साथ यह बीमारी आम हो जाती है. एक्सपर्टस के मुताबिक, ये बीमारी एक तिहाई वृद्ध लोगों को प्रभावित करती हैं. लगभग 10 में से 1 युवा को ये समस्या है.

ड्राई आई सिंड्रोम या सूखी आंखों की समस्या से दुनिया भर के लोग प्रभावित हैं. इस बीमारी में लोगों की आंख की रोशनी कम हो जाती है. ऐसे मरीजों के लिए अब तक कोई परमानेंट इलाज (Dry Eye Syndrome Treatment) नहीं था. लेकिन एम्स के डॉक्टरों ने अब यह संभव कर दिखाया है. दरअसल उम्र बढ़ने के साथ आंखों में मौजूद रेटिना पिगमेंट सूख जाता है, जिससे रोशनी कम हो जाती है. ऐसे मरीजों का अब स्टेम सेल से इलाज संभव हो पाएगा.एम्स के डॉक्टरों के अनुसार, ड्राई रेटिना के मरीजों की 15 मिनट की प्रक्रिया के बाद रोशनी वापस आ सकती है.
एम्स के आरपी सेंटर में रेटिना इंचार्ज डॉक्टर राजपाल ने कहा कि ड्राई आई सिंड्रोम का अभी तक कोई खास मेडिकल ट्रीटमेंट नहीं हुआ है. लेकिन भारत में पहली बार स्टेम सेल के जरिए इलाज किया जा रहा है, जिसकी नतीजे काफी बेहतर देखने को मिले हैं.
कैसे हो रहा ड्राई आई सिंड्रोम का इलाज?
डॉ राजपाल ने कहा कि भारत में पहली बार स्टेम सेल इंजेक्ट किया गया है, जो सब रेटिनली इंजेक्ट किया जाता है. ये आई स्टेम सेल के नाम से होता है. यह पूरा प्रोसीजर 15 से 20 मिनट का है. इसमें रेटिनली इंजेक्ट किया जाता है और फिर देखा जाता है कि इसका क्या असर हुआ. उन्होंने कहा कि यह ठीक उसी जगह पर इंजेक्ट किया जाता है, जहां स्टेम सेल की डिफिशिएंसी होती है. इसका लाभ यह होता है कि वहां वह सेल रीजेनरेट हो जाते है. 2 से 3 महीने में मरीज के आंखों की रोशनी पहले से काफी बेहतर हो जाती है.
दो मरीजों की सूखी आंखों की परेशानी का इलाज हुआ
डॉ. राजपाल ने एनडीटीवी को बताया कि अब तक हमने दो मरीजों का इलाज किया है. अभी मरीजों को भर्ती करके इलाज किया जाता है. ये पूरा डे केयर का सिस्टम है. उन्होंने कहा कि एम्स पहली ऐसी जगह है, जहां पर इसका क्लिनिकल ट्रायल चल रहा है. ट्रायल के लिए दूसरी जगह एलवी प्रसाद और तीसरी जगह गणपत नेत्रालय है.लेकिन इनके ट्रायल कंप्लीशन में अभी साल-दो साल का वक्त लगेगा.
स्टेम सेल कहां से आ रहा?
डॉ. राजपाल ने कहा कि पूरा प्रयोग देसी सिस्टम पर चल रहा है. एम्स दिल्ली में यह स्टेम सेल बेंगलुरु से आ रहा है. उन्होंने कहा कि फिलहाल बेंगलुरु में इसे जनरेट किया जा रहा है.
बायो सिंथेटिक कॉर्निया बना वरदान
वहीं कॉर्निया की कमी को दूर करने के लिए एम्स में बायो सिंथेटिक कॉर्निया पर भी काम किया जा रहा है. एम्स में आरपी सेंटर की डॉ नम्रता शर्मा ने कहा कि अब तक 70 मरीजों को सिंथेटिक कॉर्निया लगाया जा चुका है.उन्होंने कहा कि हमारे स्वीडिश कोलैबोरेटर्स है, उनके रिसर्च लैब में यह कॉर्निया कोलीजिन से बना है.
सिंथेटिक कॉर्निया कैसे करता है काम?
डॉ नम्रता शर्मा ने बताया कि उन्होंने कैरटॉकोनस केस में इम्प्लांट किया है, जिसमें कॉर्निया बहुत पतला हो जाता है. उसका कर्वेचर भी चेंज हो जाता है. इसके काफी अच्छे परिणाम सामने आए हैं. ये कॉर्नियल थिकनेस को बढ़ा देता है. इससे कॉर्निया क्लियर भी रहता है और मरीज की नजर भी इंप्रूव हो जाती है.
कंप्लीट कॉर्निया बनाने का लक्ष्य
डॉ नम्रता शर्मा ने कहा कि अभी तक की रिसर्च पार्शियल कॉर्निया पर है. अब कंप्लीट कॉर्निया बनाने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने बताया कि कॉर्निया में कुल 6 लेयर होती हैं. अब तक चार लेयर बना पाए हैं. एंडोथीलियल सेल, जो कॉर्निया की पारदर्शिता के लिए जिम्मेदार है उसे हम अब तक बना नहीं पाए हैं. इसीलिए पार्शियल कॉर्निया के ऊपर एंडोथिलियल सेल ग्रो करने की कोशिश की जा रही है, कंप्लीट कॉर्निया बनाई जा सके.
बता दें कि ड्राई आई सिंड्रोम किसी को भी प्रभावित कर सकता है, लेकिन बढ़ती उम्र के साथ यह बीमारी आम हो जाती है. एक्सपर्टस के मुताबिक, ये बीमारी एक तिहाई वृद्ध लोगों को प्रभावित करती हैं. लगभग 10 में से 1 युवा को ये समस्या है. हालांकि महिलाएं पुरुषों की तुलना में इस बीमारी से ज्यादा प्रभावित होती हैं.