क्या खाते हैं, कहां रहते हैं, कैसा होता है इनका जीवन...इन 5 प्वाइंट्स में समझिए 'अघोरियों' की रहस्यमयी दुनिया

अघोरी मृत्यु (Aghori sadhu kaun hai) को अंतिम सत्य मानते हैं इसलिए वे श्मशान घाट पर साधना करते हैं. ये भगवान शिव को 'महाकाल' के रूप में पूजते हैं और उनका मानना है कि भोलेनाथ ही सृष्टि के सृजन, पालन और संहार के मुख्य देवता हैं.

जनवरी 24, 2025 - 09:52
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क्या खाते हैं, कहां रहते हैं, कैसा होता है इनका जीवन...इन 5 प्वाइंट्स में समझिए 'अघोरियों' की रहस्यमयी दुनिया

Mystery Behind Aghori Sadhus : अघोरी साधुओं को बेहद खतरनाक माना जाता है. अघोरी का जीवन-मृत्यु के बंधनों से अलग होकर श्मशान भूमि में जीवन बिताना और तपस्या करना होता है. अघोरी तंत्र साधना भी करते हैं, जो उन्हें साधारण साधुओं से अलग करती है. अघोरी बनने के लिए व्यक्ति को कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है. अघोरी (Aghori Sadhus) भगवान शिव के भक्त होते हैं और जीवन-मृत्यु, पवित्र-अशुद्ध जैसी सामाजिक मान्यताओं से अलग रहकर साधना करते हैं. अघोर पंथ का उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना और सांसारिक मोह-माया से मुक्त होना है. अघोरी मृत्यु (Aghori sadhu kaun hai) को अंतिम सत्य मानते हैं और इसलिए वे श्मशान घाट पर साधना करते हैं. ये भगवान शिव को 'महाकाल' के रूप में पूजते हैं और उनका मानना है कि शिव ही सृष्टि के सृजन, पालन और संहार के मुख्य देवता हैं. अघोरी (Aghori sadhu ke niyam) अक्सर विभूति (राख) से अपने शरीर को ढकते हैं. कहते हैं कि वे मानव खोपड़ियों का उपयोग कटोरी के रूप में करते हैं. अघोरी साधु मांस सेवन करते हैं. यहां तक कि जानवरों का कच्चा मांस तक खाते हैं.

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आइए अघोरियों के बारे में जानते हैं 5 रहस्यमयी बातें - 5 mysterious things about Aghoris

अघोरियों को दी जाती है दीक्षा - Aghoris are given initiation

अघोर का ज्ञान किताबों से नहीं बल्कि गुरु की सेवा और उन्हें समर्पण से मिलता है. एक शिष्य को दीक्षा देने से पहले, उसे तीन सालों तक आश्रम में सेवा करनी होती है. इस अवधि के दौरान, गुरु शिष्य के समर्पण, धैर्य और साहस को परखा जाता है. फिर गुरु यह निर्णय लेते हैं कि शिष्य को दीक्षा दी जाए या नहीं. इसका उद्देश्य शिष्य को मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार करना है, ताकि वह अघोर पंथ की जटिल शिक्षाओं को समझने और अपनाने की क्षमता रख सकें. अघोरियों को लेकर समाज में कई भ्रांतियां हैं, जिनमें से कुछ सोशल मीडिया पर भी प्रसारित होती रहती हैं.

करते हैं ये 3 तरह की साधना - Aghoris do these three types of sadhna

अघोरी साधुओं की साधना तीन तरह की होती है. श्मशान साधना, शिव साधना, और शव साधना. अघोरी श्मशान घाटों में साधना करते हैं. श्मशान साधना मानसिक और आत्मिक शांति के लिए करते हैं. इस साधना में अघोरी श्मशान में बैठकर ध्यान करते हैं. शिव साधना भी शिव जी की आराधना का एक रूप है, जिसमें अघोरी शिव को परम चेतना और ब्रह्मांड के रचयिता के रूप में मानते हैं. उनके अनुसार, शिव ही जीवन और मृत्यु के स्वामी हैं. शव साधना में मुर्दे के साथ कर्मकांड और अनुष्ठान किए जाते हैं. इसमें मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है.

काला जादू या तांत्रिक क्रिया को लेकर मतभेद - Differences over black magic or tantric rituals

कुछ लोग मानते हैं कि अघोरी काला जादू करते हैं, जबकि अन्य लोग इस बात से सहमत नहीं होते. अघोरियों और काले जादू का विषय हमेशा से ही रहस्यमय और जटिल रहा है. काला जादू एक ऐसा तंत्र माना जाता है जिसका इस्तेमाल किसी को नुकसान पहुंचाने या अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए किया जाता है. अघोरियों और काले जादू के बीच का संबंध बहुत ही विवादित और मिथकों से भरा हुआ है. कुछ लोग मानते हैं कि अघोरियों के पास कई तरह की शक्तियां होती हैं जबकि कुछ मानते हैं कि ये केवल लोगों की कल्पनाएं हैं और वे असल में तांत्रिक क्रिया का हिस्सा नहीं हैं.

कहां से आती है मानव खोपड़ी - Where do Aghoris get human skulls from

अघोरियों के पास मानव खोपड़ी कहां से आती है, यह एक रहस्यमयी प्रश्न है जो आज भी लोगों को हैरत में डालता है. अघोरियों का अपनी साधना में मानव खोपड़ियों का इस्तेमाल करना एक प्राचीन परंपरा है, जो रहस्यमयी और विवादास्पद मानी जाती है. इसके पीछे कई मान्यताएं और धारणाएं हैं, जिनमें से कुछ को समाज ने आस्था से जोड़ा है. माना जाता है कि खोपड़ियां उन साधकों की होती हैं, जिन्होंने जीते जी अपना देह त्यागने के बाद अपनी खोपड़ी अघोरियों को अर्पित करने की इच्छा रखते हैं.

अघोरियों के लंबे बाल - Long hair of Aghori

अघोरियों के लंबे बाल भी एक रहस्य हैं. मान्यता है कि अघोरी भगवान शिव के सम्मान में अपने बाल बढ़ाते हैं, जो स्वयं जटाधारी हैं. कहते हैं कि लंबे बाल उन्हें बाहरी दुनिया से अलग रखते हैं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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