AI चिप से लेकर स्मार्ट कार तक... आखिर अमेरिका अपने प्याले में क्यों कर रहा 'चीनी कम'

अमेरिका और चीन एक समय में काफी अच्छे दोस्त हुआ करते थे. चीन ने पहले और दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका का साथ दिया था. अमेरिकी राष्ट्रपति विल्सन के कहने पर चीन ने मित्र देशों का साथ दिया था. लेकिन मौजूदा समय में अमेरिका, चीन को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता है. आइए समझते हैं कि कभी चीन के साथ अच्छे व्यापारिक रिश्ते रखने वाले अमेरिका को उससे परेशानी क्यों होने लगी?

जनवरी 15, 2025 - 08:06
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AI चिप से लेकर स्मार्ट कार तक... आखिर अमेरिका अपने प्याले में क्यों कर रहा 'चीनी कम'

अमेरिका और चीन के बीच दुनिया का बॉस बनने को लेकर होड़ लगी रहती है. चीन अक्सर अपनी महत्वाकांक्षी नीतियों की वजह से अमेरिका को चुनौती देता रहा है. फिर चाहे वो सेमीकंडक्टर सेक्टर हो, मरीन पावर हो या फिर स्पेस ही क्यों न हो... चीन की इस होड़ को अमेरिका अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा में खतरा मानता है. इसलिए वह कई पाबंदियों से चीन की चाल धीमी करने की कोशिश करता है. हाल के समय में अमेरिकी सरकार ने ऐसे कई फैसले लिए हैं, जिन्हें रूस और चीन से जोड़कर देखा जा रहा है. पहले अमेरिका ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI के लिए इस्तेमाल होने वाली सेमीकंडक्टर चिप्स को लेकर अपने कानून सख्त किए, ताकि AI चिप हासिल करने में रूस और चीन के लिए मुश्किलें खड़ी हों. अब अमेरिका ने स्मार्ट कार को लेकर नए नियम बनाए हैं. ऐसा इसलिए किया गया अमेरिकी मार्केट में चीन की टेक्नोलॉजी को आने से रोका जा सके.

अमेरिका और चीन एक समय में काफी अच्छे दोस्त हुआ करते थे. चीन ने पहले और दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका का साथ दिया था. मौजूदा समय में अमेरिका, चीन को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता है. आइए समझते हैं कि कभी चीन के साथ अच्छे व्यापारिक रिश्ते रखने वाले अमेरिका को उससे परेशानी क्यों होने लगी? क्यों अमेरिका, चीन पर एक के बाद एक पाबंदियां लगा रहा है...

दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के नए राष्ट्रपति के रूप में 20 जनवरी को शपथ लेने वाले हैं. विदाई से पहले जो बाइडेन सरकार ने अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी के नाम पर अमेरिकी मार्केट में चीनी गाड़ियों के सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर पर बैन लगाने का फैसला लिया है. 

ट्रंप ने चीन के प्रति अपनाया था कड़ा रुख
चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप ने चीन के प्रति कड़ा रुख अपनाने का वादा किया था. उन्होंने कहा था, "हम अमेरिका में चीनी कारों को बेचना नहीं चाहते. अगर चीन या अन्य देशों की कंपनियां यहां कारोबार करना चाहती हैं, तो उन्हें अमेरिका में सेटअप लगाना होगा. लोकल लोगों को नौकरियां देनी होंगी"

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दिसंबर में किया था ऐसी पॉलिसी लाने का ऐलान
अमेरिका ने दिसंबर में ऐलान किया था कि वह जल्द कार मार्केट में चीन और रूस जैसे विरोधियों की टेक्नोलॉजी वाले ड्रोन से पैदा हो रहे खतरों से निपटने के लिए नई पाबंदियों पर विचार कर रहा है. 

अमेरिकी कॉमर्स सेक्रेटरी जीना रायमुंडो ने कहा, "हमारे पास सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं हैं. यह सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है कि चीनी सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर हमारे कनेक्टेड व्हीकल सिस्टम का हिस्सा न बनें. नए नियम का मकसद अमेरिकी सड़कों पर चीनी गाड़ियों और रूस की टेक्नोलॉजी की मौजूदगी को सीमित करना है."

जीना रायमुंडो कहती हैं, "आज के समय में कारें सिर्फ व्हील पर चलने वाली गाड़ियां ही नहीं हैं. ये अपने आप में एक कंप्यूटर होती हैं. मॉर्डन व्हीकल कैमरे से लैस होते हैं. इनमें माइक्रोफोन लगे रहते हैं. GPS ट्रैकिंग सिस्टम होता है. इसके साथ ही दूसरी टेक्नोलॉजी होती हैं, जो इंटरनेट से कनेक्टेड होती हैं." अमेरिकी कॉमर्स सेक्रेटरी कहती हैं, "पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना और रूस की मैन्युफैक्चरिंग टेक्नोलॉजी के खतरों से बचने के लिए हम नए नियमों को लेकर आए हैं."

कब से लागू होंगे नियम?
अमेरिका के ये नए नियम 2027 से लागू किए जाएंगे. चीन के सॉफ्टवेयर पर अमेरिकी पाबंदियां दो साल बाद यानी 2027 से और चीनी हार्डवेयर पर पाबंदियां 2030 से प्रभावी होंगी. अमेरिका ने चीन के साथ-साथ रूस के हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर पर भी बैन लगाने की बात कही है. डोमेस्टिक इंडस्ट्रीज को बूस्ट करने के इरादे से भी अमेरिका ने ये नियम बनाए हैं.

सितंबर 2024 में पेश किया गया था प्रस्ताव
रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर 2024 में अमेरिका ने इस नियम का प्रस्ताव पेश किया था. इसके बाद इंडस्ट्री से फीडबैक लिया गया. इसके तहत कई व्हीकल मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों मसलन जनरल मोटर्स, टोयोटा और हुंडई ने नियम की डेडलाइन बढ़ाने की मांग की थी. अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी है. लिहाजा डेडलाइन और नहीं बढ़ाई जा सकती.

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क्या टेस्ला को होगा फायदा?
चीनी सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर पर पाबंदियों से अमेरिकी इलेक्ट्रिक कार मैन्युफैक्चरिंग कंपनी टेस्ला को बड़ा फायदा हो सकता है. मौजूदा समय में टेस्ला इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री में नंबर वन है. जबकि चीन की BYD से टेस्ला को कड़ी टक्कर मिलती है. अमेरिका के नए प्रतिबंधों के बाद इस चीनी कंपनी को नुकसान हो सकता है. जबकि टेस्ला की मार्केट हिस्सेदारी मजबूत हो जाएगी. हालांकि, अमेरिका के इस फैसले का असर भारत के मार्केट पर भी पड़ सकता है.

AI चिप के निर्यात के नियम भी किए सख्त
अमेरिका ने सहयोगी देशों को AI चिप के निर्यात में रियायत देने और दुश्‍मन देशों जैसे चीन-रूस में इसकी पहुंच को कंट्रोल करने के लिए नए नियम लागू किए हैं. मौजूदा राष्‍ट्रपति जो बाइडेन ने अपना कार्यकाल खत्‍म होने से पहले ये बड़ा कदम उठाया है. अमेरिकी सरकार के नए फैसले के मुताबिक, दक्षिण कोरिया समेत 20 प्रमुख अमेरिकी सहयोगियों और भागीदारों पर चिप के निर्यात पर कोई बैन लागू नहीं होगा. वहीं, रूस और चीन जैसे देशों के लिए नए नियमों से उनकी कम्प्यूटेशनल ताकत की सीमा निर्धारित कर दी गई है. अमेरिका के इस कदम से चीन तिलमिला गया है.

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कैसे बढ़ती गई अमेरिका और चीन की दुश्मनी?
अमेरिका में चीन की आबादी 40 लाख से ऊपर बताई जाती है. साल 1850 से 1905 के बीच दोनों देशों के रिश्तों में कई बार उतार-चढ़ाव आए. बिजनेस में बढ़ोतरी भी हुई, कई बार नुकसान भी हुआ. लेकिन रिश्ते बने हुए थे. दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध जुलाई 2018 में शुरू हुआ. तब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 34 बिलियन अमेरिकी डॉलर वैल्यू के 818 चीनी सामानों पर 25% टैरिफ लगाया था. चीन ने इसपर कड़ी आपत्ति जताई. फिर तमाम कोशिशों के बाद आखिरकार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एक्सचेंज रेट, इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स समेत तमाम व्यापारिक मुद्दों को सुलझाने के लिए मीटिंग की थी. हालांकि, इन बैठकों का कोई नतीजा नहीं निकल पाया था.

अब ये दोनों देश दूसरे देशों के जरिए एक-दूसरे पर अपनी भड़ास निकालते रहे हैं. मसलन अमेरिका चीन को टारगेट करने के लिए ताइवान, जापान, भारत, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड्स जैसे देशों का सहारा लेता है. वहीं, चीन मालद्वीप, पाकिस्तान, रूस, श्रीलंका और सऊदी जैसे देशों का इस्तेमाल करता आया है.

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अमेरिका को चीन से क्या है दिक्कत?
-अमेरिका सोचता रहा है कि वह दुनिया की बड़ी इकोनॉमी है, इसलिए दुनिया पर वही राज करेगा. जबकि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महात्वाकांक्षी दुनिया का बॉस बनने की है. चीन का मानना है कि उसके पास मार्केट है, वर्कफोर्स है... इसलिए उसे आगे बढ़ना चाहिए. इसलिए चीन AI चिप्स के  सेक्टर में भी आत्मनिर्भर बनता जा रहा है.

-दूसरी ओर अमेरिका को लगता है कि अगर चीन को AI चिप मिलती है, तो इससे ड्रैगन की आर्मी ज्यादा ताकतवर हो जाएगी. टेक्नोलॉजी सेक्टर में भी चीन मजबूत हो जाएगा. यही वजह है कि अमेरिका की तरफ से इसको लेकर नया नियम लाया गया है.

-अमेरिका को चीन की आर्थिक प्रतिस्पर्धा, वैज्ञानिक प्रतिस्पर्धा, साउथ चाइना सी में चीन के बढ़ते दखल, मानवाधिकारों को लेकर चीन के रुख, जिनपिंग की वैश्विक महात्वाकांक्षाएं, सबमरीन ताकत, एंटी-शिप बैलेस्टिक मिसाइलों की बढ़ती ताकत और स्पेस में तेजी से बढ़ते कदम से परेशानी है. अमेरिका हर हाल में चीन को खुद से आगे जाने से रोकना चाहता है.

-हालांकि, दोनों ही देश सीधे तौर पर जंग लड़ने से बचते रहे हैं. चीन और अमेरिका दूसरों देशों के कंधों पर बंदूक रखकर ही डेप्लोमेटिक लड़ाई लड़ रहे हैं.

चीन को कब-कब मिली अमेरिका से मात?
-2016 में अमेरिका ने चीन को चिप वॉर में पहली मात दी. तब चीन जर्मनी कंपनी एक्सट्रॉन को खरीदने वाला था. इस कंपनी के कुछ असेट अमेरिका में भी थे. अमेरिका का रक्षा विभाग इस कंपनी से चिप लेता था. तब तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक ऑर्डिनेस से चीन-जर्मन कंपनी की इस डील पर रोक लगा दी.

-फिर इसी साल अमेरिका ने चिप्स को लेकर नया नियम बनाया. सरकार ने नियम बनाया कि कोई भी अमेरिकी नागरिक, ग्रीन कार्ड होल्डर या कंपनी चीन की सेमीकंडक्टर कंपनी को मदद देने से पहले या कोई भी डील करने से पहले अमेरिकी सरकार से परमिशन लेगी.

-फिर 9 अगस्त 2022 को जो बाइडेन सरकार ने यूनाइटेड स्टेट्स चिप्स एंड साइंस एक्ट पास किया और चीन की उड़ान पर कुछ हद तक लगाम लगाने की कोशिश की.

-जनवरी 2023 में चिप्स को लेकर अमेरिका, जापान और नीदरलैंड्स ने डील की. इसके तहत इन देशों में समझौता हुआ कि ये देश चीन को चिप मेकिंग टेक्नोलॉजी, मशीनें और सर्विस नहीं बेचेंगे.

-चीन को चिप वॉर में हराने के लिए अमेरिका के सबसे बड़े हथियार के तौर पर ASML सामने आया है. ये कंपनी लिथोग्राफी मशीन्स बनाती हैं. यानी चिप की प्रिंटिंग करती हैं. लेकिन, अमेरिका, जापान और नीदरलैंड्स में हुए समझौते के बाद ASML अब चीन की चिप मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को लिथोग्राफी मशीन्स नहीं बेच पाएगी.

-अमेरिका ने चीन पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, जिनमें चीनी बैंकों और कंपनियों पर प्रतिबंध शामिल हैं. अमेरिका ने चीनी कंपनियों पर प्रतिबंध और चीनी उत्पादों पर टैरिफ लगा रखा है.

-अमेरिका अब चीन के ड्रोन्स पर बैन लगाने पर विचार कर रहा है. अमेरिका में बीते साल जून में जांच शुरू की गई थी, जिसमें संवेदनशील अमेरिकी सैन्य प्रतिष्ठानों के पास चीनी ड्रोन्स की बढ़ती मौजूदगी पर चिंता जताई गई थी. जिसके बाद अमेरिका ने चीन के ड्रोन पर बैन लगाने की बात कही थी.

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