निर्देशक का आत्ममोह, कैसे करेंगे सोनू सूद बॉक्स ऑफिस 'फतेह'?

सोनू सूद की फतेह फाइनली पर्दे पर आ चुकी है. इस फिल्म को देखने पर विचार बना रहे हैं तो एक बार पढ़ लीजिए मूवी रिव्यू.

जनवरी 13, 2025 - 18:54
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निर्देशक का आत्ममोह, कैसे करेंगे सोनू सूद बॉक्स ऑफिस 'फतेह'?

निर्देशक सोनू सूद ने खुद के अभिनय और एक्शन सीन्स से आत्ममोह की वजह से बाकी कलाकारों के लिए जगह नही छोड़ी. एक अच्छे विषय पर बॉलीवुड की अपनी कहानी का बॉक्स ऑफिस को फ़तेह कर पाना मुश्किल नज़र आ रहा है. फतेह की कहानी किसी सीक्रेट एजंसी में काम कर चुके फतेह के इर्दगिर्द चलती है. फतेह पंजाब के अपने गांव से दिल्ली पहुंची एक लड़की की तलाश में साइबर क्राइम की एक ऐसी दुनिया से रूबरू होता है जो आज की सच्चाई है. फतेह को दिल्ली में हैकर खुशी का साथ मिलता है और उसके साथ मिलकर वह रेजा, सत्य प्रकाश और बिस्वास की बनाई ऑनलाइन अपराध की दुनिया को खत्म कर देता है.

लंबी स्टार कास्ट पर फ़ोकस में सिर्फ सोनू सूद

फ़िल्म में मुख्य किरदार फतेह का है, जिसे सोनू सूद द्वारा निभाया गया है. फ़तेह किसी भी सामान को सही तरीके से रखता है, जैसे किसी की जान लेने के बाद टेबल पर पड़े मोबाइल को सीधा रखना और वह हॉलीवुड के किसी एक्शन हीरो की तरह सूट बूट पहनता है. वह खुशी के 'तुम आज के समय में भी डायरी यूज़ करते हो?' सवाल का जवाब 'ये हैक नही होती' देता है.

एक एक्शन हीरो के रूप में सोनू कहीं से भी पीछे नही रहे हैं और फ़िल्म का अधिकतर हिस्सा उन पर ही फिल्माया गया है.

सत्य प्रकाश नाम के विलेन बने विजय राज की वजह से फ़िल्म से दर्शक बंधे रहते हैं. हालांकि फ़तेह को छोड़कर किसी भी किरदार को इतना उभारा नही गया है जिससे वह याद रखने लायक किरदार निभा सके. साइबर क्राइम पर विजय राज बोलते हैं 'टेक्नोलॉजी, कमाल की चीज़ है न. कमाता कोई है और उड़ाता कोई और है.' यह टेक्नोलॉजी के प्रयोग पर गहरा सवाल छोड़ जाता है.

खुशी के रुप में दिखी जैकलीन के पास जितना भी अभिनय करने का मौका था, उसमें वह प्रभावी लगी हैं. डिजिटल दुनिया में रेजा का किरदार निभाते नज़र आए नसरुद्दीन शाह को भी स्क्रीन पर इतना वक्त नही मिला है कि वह एक यादगार किरदार निभाते.

भ्रष्ट पुलिस अधिकारी बिस्वास बने दिब्येंदु भट्टाचार्य और प्रकाश बेलवाड़ी की अभिनय क्षमता को फ़िल्म में बर्बाद ही किया गया है, मारधाड़ को ज्यादा वक्त देने की जगह फ़िल्म के किरदारों को और गहराई दी जाती तो बेहतर होता. गीत संगीत और संवादों में फ़तेह करती फ़िल्म.

फ़िल्म का टाइटल सांग 'फतेह कर फतेह' आगे चल कर कई क्रिकेट, कबड्डी, हॉकी मैचों में बजता सुनाई देगा और यो यो हनी सिंह के फॉलोवर्स के लिए भी फ़िल्म में 'हिटमैन' मौजूद है. दो बार के ऑस्कर विजेता हंस जिमर को फ़िल्म का बैकग्राउंड स्कोर मजबूत करने के लिए लाया गया है और उन्होंने अपने काम से निराश नही किया है.

फ़िल्म के संवाद ऐसे नही हैं जिन्हें सुनते हुए दर्शकों को बोरियत महसूस हो, फ़तेह के लिए बोला गया संवाद 'हर छह फुटिया बच्चन नही होता' इसका उदाहरण है. फ़तेह का तकिया कलाम 'सबको जानना है' भी याद रह जाता है. सोनू लाए ऑरिजनल पर खून खराबे से उकता गए हैं दर्शक.

फ़िल्म का निर्देशन कर रहे सोनू सूद ने साइबर क्राइम जैसे नए और गम्भीर विषय पर यह फ़िल्म बनाई है. बैकग्राउंड में चल रही कहानी पर सोनू का ये कहना कि आप अपने सेल्फ़ोन्स को देख रहे होते हैं और कोई और आपको देख रहा होता है, इस विषय की गम्भीरता दिखाता है. लेकिन हॉलीवुड, बॉलीवुड की कुछ हालिया फिल्मों से प्रभावित एक्शन सीन्स की अधिकता ने फ़िल्म में ठहराव सा ला दिया है, लगभग दो घण्टे की फ़िल्म में आधे घण्टे के आसपास बस खून खराबा ही दिखाया गया है. 

सोनू सूद रीमेक के इस दौर में बॉलीवुड के लिए कुछ अपना तो लाए हैं पर शायद अब हिंदी पट्टी के दर्शक भी इन अत्यधिक खून खराबे वाले दृश्यों से उकता गए हैं. इसी वजह से फ़िल्म में 'शरीर तो नश्वर है, आत्मा कहाँ मरती है' और 'जो आया है वो जाएगा सृष्टि का नियम है' जैसी गीता की पंक्तियों से अपने किरदार को दर्शकों के सामने एक अमर हीरो बनाने के प्रयास में सोनू नाकामयाब रहे हैं.

तकनीकी रूप से सशक्त है फ़िल्म, स्क्रिप्ट में रह गई कमी.

कहीं कहीं पर फ़िल्म का छायांकन बहुत शानदार है, खास तौर पर क्लोज़ आप शॉट्स फ़िल्म की जान हैं. हॉलीवुड के एक्शन सीन्स को टक्कर देने के लिए इनका अच्छा दिखना बेहद जरूरी होता है और कैमरामैन इसमें कामयाब भी रहे हैं. सोनू सूद और प्रकाश बेलवाड़ी को साथ दिखाने वाले लगभग सभी दृश्य अच्छे लगते हैं, जैकलीन और सोनू सूद का सूर्यास्त के समय साथ खड़े होने वाला दृश्य सबसे बढ़िया लगा है.

फ़िल्म की एडिटिंग पर की गई मेहनत भी साफ झलकती है, एक दृश्य में पुलिस ऑफिसर बिस्वास दुकान वाले से कहता है 'ओए स्टीम मोमो है' और उसके अगले दृश्य में हम नसरुद्दीन शाह को मोमो पर ही 'मोमोज़, बचपन से ही मेरी वीकनेस है' कहते देखते हैं.

फ़तेह की कहानी तो जानदार है पर स्क्रिप्ट राइटिंग में बहुत जगह कमी महसूस होती है, डीपफेक वीडियो से फ़तेह का नाम खराब होता है पर उसे सही करने का कोई प्रयास नही दिखाया गया है. खुशी, फ़तेह को जान का खतरा बता कर आगाह कर देती है लेकिन खुद पर होने वाले हमले की उसे ख़बर नही होती, हमलावारों के आने पर भी सामान गिराकर वह उन्हें निमंत्रण देती लगती है.

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